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संविधान सभा के गठन के उपरान्त भारत में संविधान में मौलिक अधिकार हेतु बल्लभ भाई पटेल की अध्यक्षता में एक समिति नवम्बर, 1946 ई0 में मूल अधिकार तथा अल्पसंख्यक अधिकार समिति की गठन किया गया। साथ ही इसकी एक उपसमिति जे0बी0 कृपलानी की अध्यक्षता में किया गया।
भारत के संविधान में मूल अधिकार संविधान के भाग – 03 में अनुच्छेद 12 से 35 के मध्य किया गया है। जो अमेरिका के संविधान से लिया गया है। प्रारम्भ में भारत के मूल अधिकार 07 नियत किया गया था। जो निम्नवत है:
1. समानता का अधिकार। 2. स्वतंत्रता का अधिकार। 3. शोषण के विरूद्ध अधिकार। 4. धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार। 5. संस्कृति और शिक्षा सम्बन्धित अधिकार। 6. सम्पत्ति का अधिकार। 7. संविधानिक उपचारों का अधिकार।
6th मूल अधिकार अर्थात सम्पत्ति का अधिकार अनुच्छेद 31 को भारत के 44 वें संविधान संशोधन विधयक सन् 1978 ई0 में इसे मूल अधिकार से समाप्त कर भारत के संविधान के भाग 12 के अनुच्छेद 300 (क) में लागू कर दिया गया है।
जैसा की आप जानते है कि भारत के संविधान में वर्तमान समय में छ: मूल अधिकार प्रदान करता है। जिसमें सबसे प्रथम समानता का अधिकार जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 से 18 तक इसका उल्लेख है जिसमें कुल 05 अनुच्छेद यथा अनुच्छेद 14, 15, 16, 17 व 18 है।
उसी प्रकार द्वितीय मूल अधिकार स्वतंत्रता का अधिकार जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 19, 20, 21 व 22 तक है जिसमें कुल 04 अनुच्छेद है, शोषण के विरूद्ध अधिकार अनुच्छेद 23 व 24 जिसमें कुल 02 अनुच्छेद है।
धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 तक है जिसमें कुल 04 अनुच्छेद यथा 25, 26, 27 व 28 है।
संस्कृति और शिक्षा सम्बन्धित अधिकार जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 29 व 30 अर्थात कुल 02 अनुच्छेद व अंतिम मूल अधिकार संविधानिक उपचारों का अधिकार जो केवल भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 में ही है।
भारत के संविधान का सबसे महत्वपूर्ण मूल अधिकारी है जिसे डॉ. भीम राव अम्बेडकर जी ने संविधान की आत्मा की संज्ञा दी है। जिसके तहत किसी भी मूल अधिकार का अधिकार का हनन होने पर भारत के उच्चतम न्यायालय में पॉच तरह के रिट दाखिल किया जा सकता है। 1. बन्दी प्रत्यक्षकरण। 2. परमादेश। 3. प्रतिषेध लेख। 4. उत्प्रेषण। 5. अधिकार पृच्छा लेख।