Historical background of Indian constitution in Hindi | भारतीय संविधान की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

यह लेख Historical background of Indian constitution in Hindi भारतीय संविधान का प्रथम भाग है, जिसके तहत हमनें भारत के संविधान के ऐतिहासिक विकास व भारतीय संविधान के महत्वपूर्ण अधनिमय व उनमें महत्वपूर्ण विषय का उल्लेख किया गया है। जो मुख्य रूप से एक छात्र को ध्यान में रख कर लिखा गया है।

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Historical background of Indian constitution in Hindi Class Notes :

संविधान शब्द सम् + विधान से मिलकर बना हुआ है। सम् का अर्थ होता है समान रूप सेविधान का अर्थ होता है नियम या कानून अर्थात संविधान एक ऐसा कानून या विधान या नियम होता है जो सभी के लिए एक समान रूप में लागू होता है।

संविधान की परिभाषा :-

संविधान किसी देश का मौलिक एवं लिखित दस्तावेज होता है, जिसके आधार पर देश की शासन व्यवस्था होती है।
जिस देश का शासन जिन नियमों एवं सिद्धातों के अनुसार चलना है उसे सिद्धान्त या नियम के समूह को संविधान कहा जाता है।

भारत में संविधान का प्रारम्भ कैसे हुआ ? 

ब्रिटेन में सन् 1600 ई0 में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना हुआ था। उस समय वहाॅ की महारानी एजिलाबेथ प्रथम ने एक चार्टर के माध्यम से भारत ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना किया गया व साथ ही भारत व उसके पड़ोसी देशों पर एकाधिकार व्यापर करने कि अनुमति प्रदान किया गया।

जिस समय ब्रिटेन में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना हुआ था। उस भारत में मुगल वंश के बादशाह अकबर महान का शासन था।

सन् 1605 ई0 में ईस्ट इंडिया कंपनी की ओर से केप्टन हांकिस जहाॅगीर के दरबार में व्यापर करने की अनुमति हेतु आए थे। लेकिन केप्टन हांकिस को यह अनुमति प्राप्त नहीं हो सका।

ठिक 07 साल बाद सन् 1612 ई0 में सर टांमस रो पुनः व्यापारिक अनुमति प्राप्त करने हेतु जहाॅगीर के राज दरबाद में आएं व यह अनुमति प्राप्त करने में सफर हुए।

नोट:- यह याद रखने वाली बात है कि जब ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना हुआ था। उस समय भारत में मुगल बादशाह अकबर का शासन काल था, लेकिन जब अनुमति हेतु राज दरबार में ईस्ट इंडिया कंपनी कि ओर से कोई आए थे उस समय भारत का मुगल बादशाह जहाॅगीर थे।

सन् 1757 ई0 में प्लासी का युद्धसन् 1764 ई0 में बक्सर के युद्ध के बाद लगभग भारत का ज्यादतर भाग ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अधीन हो गया था।

उन क्षेत्रों को शासन व्यावस्था लागू करने हेतु सन् 1773 ई0 से लेकर भारत स्वत्रंता अधिनियम सन् 1947 ई0 में तक अनेक अधिनियम को लागू किया।

इन अधिनियम के तहत ही भारत के संविधान का विकास हुआ है। इस काल को संविधान का भारतीय संविधान का ऐतिहासिक समय के नाम से जाना जाता है। जो मुख्य रूप से दो भागों में बाटा गया है।

  1. कंपनी का शासन (सन् 1773 ई0 से लेकर सन् 1858 ई0 तक)
  2. ताज का शासन (सन् 1858 ई0 से सन् 1947 ई0 तक)

1. कंपनी का शासन (सन् 1773 ई0 से लेकर सन् 1858 ई0 तक) :

कंपनी का शासन उस समय को कहा जाता है जब भारत की शासन व्यवस्था ब्रिटेन द्वारा स्थापित ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा किया जा रहा था। जिसे सन् 1858 में वापस ले लिया गया। इस समय में महत्वपूर्ण एक्ट निम्नवत् हैः

  1. 1773 का रेगुलेटिंग एक्ट।
  2. 1781 का एक्ट (एक्ट आॅफ सैटलमेंट)
  3. 1784 का पिट्स इंडिया एक्ट।
  4. 1833 का चार्टर अधिनियम।
  5. 1853 का चार्टर अधिनियम।

2. ताज का शासन (सन् 1858 ई0 से सन् 1947 ई0 तक) :

सन् 1857 के विद्रोह के बाद ब्रिटेन द्वारा सन् 1858 ई0 में ईस्ट इंडिया कंपनी को समाप्त कर दिया जाता है व उसके बाद भारत की शासन व्यवस्था ब्रिटेन के ताज के अधिन हो जाता है।

जिसे ब्रिटेन द्वारा नियुक्त अधिकारी द्वारा भारत की शासन व्यवस्था की जाती थी। इस लिए इस समय को ताज का शासन कहते है। इस समय के महत्वपूर्ण एक्ट निम्नवत् है:

  1. 1858 का भारत शासन अधिनियम।
  2. 1892 ई0 का भारत परिषद् अधिनियम।
  3. 1909 का अधिनियम।
  4. 1919 का अधिनियम।
  5. 1935 भारत शासन अधिनियम।
  6. 1947 ई0 का भारत स्वत्रंता अधिनियम।

1. कंपनी का शासन :

कंपनी का शासन मुख्य रूप से उस समय को शासन व्यवस्था को कहा जाता है जब भारत की शासन, सेना, प्रशासन व्यवस्था मुख्य रूप से भारत के इस्ट इंडिया कंपनी के हाथों में थी।

कंपनी का शासन
कंपनी का शासन

 

इसके तहत निम्नलिखित अधिनियम या एक्ट पारित किए गये है जो निम्नवत् है:

1. सन् 1773 ई0 का रेगुलेटिंग एक्ट :

भारत का सन् 1773 ई0 का रेगुलेटिंग एक्ट ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा पारित किया गया था। जिसके तहत भारत के कार्यो को नियमित और नियंत्रण करने की दिशा में ब्रिटिश सरकार द्वारा उठाया गया पहला कदम था। जिसकी निम्नलिखित विशेषताएॅ है:

  • इसके तहत भारत में पहली बार कंपनी के प्रशासनिक और राजनैतिक कार्यों की मान्यता प्राप्त हुई।
  • भारत में केन्द्रीय प्रशासन की नींव रखी गयी।
  • भारत में पहली बार एक नये पद अर्थात बंगाल के गवर्नर को बंगाल का गवर्नर जनरल पद नाम दिया गया। और इसकी सहायता हेतु एक 04 सदस्यीय कार्यकारी परिषद की स्थापना किया गया।

नोटः भारत का प्रथम बंगाल का गवर्नर लार्ड वारेन हेस्टिंग थे।

  • भारत के मद्रास और बंबई को बंगाल के गवर्नर जनरल के अधीन कर दिया गया।
  • भारत सर्वप्रथम सन् 1774 ई0 में एक उच्चतम न्यायलय की स्थापना किया गया, जिसके मुख्य न्यायाधीस सर इिल्यिा इिम्पी या सर एलिजाह इम्पे जी थे।
  • राजस्व व नागरिक व सैन्य मामलों की जानकारी के लिए भारत में सर्वप्रथम कोर्ट आॅफ डायरेक्टर्स अर्थात कंपनी की गवर्निग बाॅडी की स्थापना किया गया।

2. सन् 1781 ई0 का एक्ट :

सन् 1781 ई0 का एक्ट को एक्ट आॅफ सैटलमेंट के नाम से भी जाना जाता है। इसके तहत मुख्य रूप से कलक्ता की सरकार को बंगाल, बिहार व उड़ीया के लिए विधि बनाने का अलग से प्रावधान किया गया।

3. 1784 का पिट्स इंडिया एक्ट :

इस एक्ट की विशेषता निम्नलिखित है:

  • इस एक्ट के भारत में पहली बार द्वैध शासन व्यवस्था की प्रारम्भ किया गया, जिसके तहत भारत के प्रशासन के कार्यो को दो भागों अर्थात राजनैतिक और वाणिज्यिक कार्यो को अलग-अलग कर दिया गया :
1. नियंत्रण बोर्ड :

राजनैनिक कार्य हेतु – नियंत्रण बोर्ड या बोर्ड आॅफ कंट्रोल की स्थापना।

2. निदेशक मंडल :

वाजिज्यिक कार्य हेतु – निदेशक मंडल अर्थात बोर्ड आॅफ डायरेक्टर्स की स्थापना किया गया।

  • इस अधिनियम के तहत भारत के कंपनी के अधिन क्षेत्र को पहली बार ‘‘ ब्रिटिश अधिपत्य का क्षेत्र ‘‘ कहा गया।
  • इस अधिनियम के तहत ब्रिटिश सरकार का भारत में कंपनी के कार्य और इसके प्रशासन पर पूर्ण नियंत्रण प्रदान कर दिया गया।

4. 1833 का चार्टर अधिनियम :

इस अधिनियम की विशेषताएं निम्नलिखित है:

1. 1833 के अधिनियम के तहत सन् 1773 अधिनियम के तहत स्थापित बंगाल के गर्वनर जनरल का पद समाप्त कर भारत का गर्वनर जनपद पद नाम दिया गया।

अगर प्रश्न में पूछा जाएं कि भारत का प्रथम गर्वनर जनपद या फिर बंगाल का अंतिम गर्वनर जनपद कौन है, तो इसका उत्तर एक ही अर्थात लाॅर्ड विलियम बैंटिक है। 

2. इस अधिनियम के तहत ईस्ट इंडिया कंपनी की एक व्यापारिक निकाय के रूप में की जाने वाली गतिविधियों को सामाप्त कर दिया गया। अब यह प्रशासनिक निकाय बना दिया गया।


3. 1833 अधिनियम के तहत मद्रास और बंबई के गवर्नर को विधायिका सम्बन्धि शक्ति से वंचित कर दिया गया। भारत के गर्वनर जनरल को पूरे ब्रिटिश भारत में विधायिका के असीमित अधिकार प्रदान कर दिया गया।


4. भारत में सर्वप्रथम सिविल सेवकों के चयन के लिए खुली प्रतियोगिता का आयोजन प्ररम्भ करने का प्रयास किया गया लेकि कोर्ट आॅफ डायरेक्टर्स के विरोध के कारण इसे समाप्त कर दिया गया।


5. 1833 अधिनियम में विधियों और संहिताकरण के लिए गवर्नर जनरल को आयोग गठित करने का प्राधिकार दिया गया। लार्ड मैकाले की अध्यक्षता में प्रथम विधि आयोग का गठन किया गया।

भारत में प्रथम विधि आयोग का स्थापना कब किया गया

भारत में विधि आयोग की स्थापना किस अधिनियम के तहत किया गया


6. भारत में दास प्रथा को विधि विरूद्ध घोषित कर दिया गया, तथा सन् 1843 ई0 में भारत में दास प्रथा को समाप्त कर दिया गया।


5. 1853 ई0 का चार्टर अधिनियम :

सन् 1853 ई0 का का चार्टर अधिनियम सन् 1793 से लेकर सन् 1853 ई0 के दौरान ब्रिटिश संसद द्वारा पारित किए गए चार्टर अधिनियम की श्रृंखला में यह अंतिम अधिनियम था। जिसकी विशेषताएं निम्नवत् है:

 

1. इस अधिनियम में पहली बार गवर्नर जनरल की परिषद् के विधायी एवं प्रशासनिक कार्यो को अलग कर दिया गया। इसके तहत परिषद में 6 नए पार्षद और जोड़े गए, जिसे विधान पार्षद कहा गया।

 

अर्थात गवर्नर जनरल के लिए नई विधान परिषद का गठन किया गया। जिसे भारतीय केंद्रीय विधान परिषद या छोटी संसद की संज्ञा दिया गया।

 

2. इस अधिनियम के तहत भारत में सर्वप्रथम सिविल सेवकों की भर्ती एवं चयन हेतु खुली प्रतियोगिता व्यवस्था का शुभारंभ किया गया।

 

1853 अधिनिमय के तहत सन् 1854 ई0 में भारतीय सिविल सेवा हेतु एक समिति का लार्ड मैकाले की अध्यक्षता में गठन किया गया। इसी लिए इस मैकेले समिति के नाम से भी जाना जाता है।

2. ताज का शासन :

ताज का शासन व्यवस्था सन् 1857 ई0 के प्रथम सवतत्रांता संग्राम या सिपाही विद्रोह के बाद के समय को ताज की शासन के नाम से जाना जाता है। जिसके तहत निम्नवत् अधिनियम पारित किया गए, जो निम्नवत् है:

ताज का शासन (सन् 1858 ई0 से सन् 1947 ई0 तक)
ताज का शासन (सन् 1858 ई0 से सन् 1947 ई0 तक)

 

1. 1858 का भारत शासन अधिनियम :

ब्रिटिश सरकार द्वारा पारित सभी अधिनियमों में से यह अधिनियम सर्वधिक महत्वपूर्ण है। क्योंकि यह अधिनियम सन् 1857 के विद्रोह के बाद लागू किया गया था।

जिसे भारत का प्रथम स्वंत्रंत्राता संग्राम यसा सिपाही विद्रोह भी कहा जाता है। यह अधिनियम भारत के शासन को अच्छा बनाने वाला अधिनियम के नाम से जाना जाता है।

1. इस अधिनियम के तहत ईस्ट इंडिया कंपनी को समाप्त कर दिया गया, और गवर्नरों, क्षेत्रों और राजस्व सम्बन्धित समस्त शक्तियां ब्रिटिश राजशाही अर्थात महरानी विक्टोरिया के अधिन चला गया।

 

2. सन् 1784 ई0 में स्थापित नियंत्रण बोर्ड और निदेशक मंडल को समाप्त कर भारत में द्वैध शासन प्रणाली समाप्त कर दिया।

 

3. एक नया पद भारत के राज्य सचिव पद का सृजन किया गया। जिसके तहत भारतीय प्रशासन पर सम्पूर्ण नियंत्रण की शक्ति निहित होती थी। यह सचिव ब्रिटिश कैबिनेट का सदस्य होता था, जो ब्रिटिश संसद के प्रति उत्तरदायी होता था।

 

4. भारत में एक मंत्री पद की व्यवस्था की गयी।

 

5. भारत में सर्वप्रथम 15 सदस्यों का एक भारत-परिषद का सृजन किया गया। जिसमें 8 सदस्य ब्रिटिश सरकार द्वारा और 7 सदस्य कंपनी के निदेशक मंडल द्वारा चुने जाते था। और इसका अध्यक्ष भारत का सचिव होता था।

 

6. इस अधिनियम के तहत भारत के मुगल सम्राट के पद को सामाप्त कर दिया गया।

 

7. भारत के गर्वनर जनपद के पद को समाप्त कर भारत में एक नया पद वायसराय का सृजन किया गया।

 

नोट : अगर परिक्षा में पूछा जाता है कि भारत का प्रथम वायसराय या फिर भारत का अंतिम गर्वनर जनपद कौन है ”  तो इन दोनों प्रश्नों का उत्तर एक लार्ड कैनिंग है।

2. 1861 के भारत परिषद अधिनियम :

इस अधिनियम कि विशेषता निम्नवत् है:

1. इस अधिनियम के तहत भारत में कानून बनाने की प्रक्रिया में सर्वप्रथम भारतीय प्रतिनिधियों को शिमिल करने की शुरूआत हुई।

जिसके तहत सन् 1862 ई0 में लाॅर्ड कैनिंग की अध्यक्षता में भारत के 03 लोगों बनारस के राजा, पटियाला के महराज व सर दिनकर राव को नांमाकित किया गया।

 

2. इस अधिनिमय के तहत भारत के कुछ प्रान्तों जैसे बंगाल, उत्तर-पश्चिम सीमा प्रांत और पंजाब में क्रंमशः 1862, 1866व 1897 ई0 में विधानपरिषदों का गठान हुआ था।

 

3. सन् 1861 के अधिनिम के तहत भारत के वायसराय को आपातकाल में बिना काउंसिल की संस्तुति के अध्यादेश जारी करने की शक्ति प्रदान कर दिया गया, जो 06 माह के लिए हो सकता था।

 

4. इस अधिनियम के तहत भारत के राज्यों में सर्वप्रथम उच्च न्यायालय की स्थापना किया गया। जिसके तहत सर्वप्रथम बंगाल सन् 1862 ई0 में उनके बाद मद्रास सन् 1862 ई0 व बंबई में सन् 1862 ई0 में उच्च न्यायाल की स्थापना किया गया।

 

नोट: 4th उच्च न्यायालय भारत के आगरा सहर में सन् 17,मार्च, 1866 ई0 मंे स्थापित किया गया, जिसे सन् 1869 में इलाहाबाद व 1919 में इसका नाम बदबर इलाहाबाद उच्च न्यायालय रखा गया। जिसके प्रथम मुख्य जज सर वालटर माॅर्गन जी है।

3. 1892 का अधिनिमय :

1. इस अधिनियम के तहत विधान परिषदों के कार्यों में वृद्धि कर उन्हें बजट पर बहस करने और कार्यपालिका के प्रश्नों का उत्तर देने का लिए अधिकृत किया गया।

 

2. भारत में सर्वप्रथम अप्रत्यक्ष चुना प्रणाली का शुरूआत हुई। जिसके तहत निकायों की सिफारिश पर की जाने वाली एक नामांकन की प्रक्रिया कहा गया।

 

4. 1909 का अधिनिम :

1. इस अधिनिमय को माॅर्ले-मिंटो सुधार अधिनियम भी कहा जाता है। माॅर्ले तद्समय भारत के राज्य सचिव, मिंटो उस समय भारत के वायसराय थे। इनके नाम पर इसे माॅर्लें-मिंटो सुधान अधिनियम के नाम से जाना गया।

 

2. इस अधिनियम के तहत भारत में सर्वप्रथम किसी भारतीय को वायसराय और गवर्नर की कार्यपरिषद के साथ एसोसिएशन बनाने का प्रावधान किया गया।

 

जिसके तहत सत्येन्द्र प्रसाद सिन्हा को प्रथम भारतीय थे, जिन्हों ने इसके लिए चुना गया।

 

3. इस अधिनियम के तहत भारत में सर्वप्रथम पृथक् निर्वाचन के आधार पर मुस्लिम के लिए सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व का प्रावधान किया गया।

 

इसके अन्तर्गत मुस्लिम सदस्यों का चुनाव मुस्लिम मतदाता ही कर सकते थे। इस प्रकार इस अधिनियम में सांप्रदायिकता को वैधानिकता प्रदान की गयी। और लाॅर्ड मिंटो को सांप्रदायिक निर्वाचन का जनक माना जाता है।

5. भारत शासन अधिनियम 1919 :

20 अगस्त 1947 को ब्रिटिश सरकार ने पहली बार घोषणा किया कि उनका उद्देश्य भारत में क्रमिक रूप से उत्तरदायी सरकार की स्थापना करना था।

1. सन् 1919 में भारत शासन अधिनियम बनाया गया, जो भारत में सन् 1921 ई0 में लागू किया गया।

 

2. इस कानून को मांटेग-चेम्सफोर्ड सुधार के नाम से जाना गया मांटेग उस समय भारत के राज्य सचिव थे और चेम्सफोर्ड वायसराय थे। इनी के नाम से इसका नाम मांटेग-चेम्सफोर्ड सुधार अधिनियम के नाम से जाना गया।

 

3. केन्द्रिय और प्रांतीय विषयों की सूची की पहचान कर एवं उन्हें पृथक कर राज्यों पर केन्द्रिय नियंत्रण कम किया गया।

प्रांतीय विषयों को पुनः दो भागों में विभाजित किया गया:

  1. हस्तातरित विषयों।
  2. आरक्षित विषय।
1. हस्तातरित विषयों :

हस्तातरित विषयों में गवर्नर व उनके मंत्री की शासन व्यवस्था होती थी। अर्थात उसपर कानून बनाने का अधिकार गवर्नर व उनके मंत्री का होता था।

 

2. आरक्षित विषय :

आरक्षित विषय में कानून बनाने का अधिकार गवर्नर व उनके कार्यपालिका परिषद का होता है।

 

4. इसके जनपद लियोनस कार्टियस है। जिसे भारत में द्वैध शासन व्यवस्था के नाम से जाना गया। इस लिए लियोनस कार्टियस को भारत में द्वैध शासन व्यवस्था का जनक भी कहा जाता है।

 

5. इस अधिनियम के तहत भारत में सर्वप्रथम या पहली बार द्विसदनीय व्यवस्था और प्रत्यक्ष निर्वाचन की व्यवस्था प्रारम्भ की गयी।

6. इस प्रकार भारतीय विधान परिषद क स्थान पर द्विसदनीय व्यवस्था यानी राज्यसभा व लोकसभा का गठन किया गया।

7. वायसराय की कार्यकारी परिषद के 6 सदस्यों में से 3 सदस्य का भरतीय होना निर्धारित कर दिया गया।

8. पहली बार केन्द्रिय बजट को राज्यों के बजट से अलग कर दिया गया और राज्य विधानसभा को अपना बजट स्वयं बनाने के लिए अधिकृत कर दिया गया।

9. भारत सचिव को अधिकार दिया गया कि वह भारत में महालेख परीक्षक की नियुक्ति कर सकता है।

10. इस अधिनियम के तहत भारत में पहली बार महिलाओं को वोट देने का अधिकार दिया गया।

6. भारत शासन अधिनियम 1935 :

1. इस अधिनियम में कूल 322 धाराएं व 10 अनुसूचियां थी।

2. इसमें भारत में अखिल भारतीय संघ की स्थापाना किया गया। जिसमें राज्य और रियासतों को एक ईकाई के तरह मना गया।

जिसके तहत तीन सूची की स्थापान किया गया जो निम्नवत् है:

  1. संघीय सूची (59 विषय)
  2. राज्य सूची (54 विषय)
  3. समवर्ती सूची (36 विषय)


3. इस अधिनियम के तहत राज्यों में लागू द्वैध शासन व्यवस्था समाप्त कर केन्द्रों में द्वैध शासन व्यवस्था को लागू किया गया।


4. साम्प्रदायिक निर्वाचन पद्धति का विस्तार किया गया।


5. भारत परिषद का अंत कर दिया गया।


6. आर0बी0आई0 की स्थापान किया गया।


7. 1937 में संघीय न्यायालय की स्थापाना किया गया।


द्वैध शासन व्यवस्था :

  • सन् 1765 से सन् 1772 ई0 के मध्य बांगाल में लागू किया गया था। इसकी सर राॅबर्ट क्लाइव को इसका जनक माना जाता है।
  • भारत में द्वैध शासन व्यवस्था सर्वप्रथम व्यवस्थ 1784 ई0 के पिट्स इंडिया एक्ट के तहत किया गया था। जिसे 1858 के अधिनियम के तहत समाप्त कर दिया गया।
  • राज्यों में द्वैध शासन व्यवस्था भारत शासन अधिनियम सन् 1919 ई0 में लागू किया गया था। जिसे सन् 1935 के अधिनियम में समाप्त कर दिया गया।
  • राज्यों में द्वैध शासन व्यवस्था के जनक लियोनस कार्टियस है।

 

वायसराय पद नाम का सफर :

सन् 1771 ई0 के अधिनियम में सर्वप्रथम भारत में एक पद का सृजन किया गया जिसे बंगाल का र्गवनर जनपद नाम दिया गया।

फिर आगे चल कर सन् 1833 ई0 के चार्टर अधिनियम में इस पद का नाम भारत का गर्वनर जनरल पद नाम दिया गया।

जिसे आगे चल कर सन् 1858 ई0 के अधिनियम में पुनः इसका नाम परिवर्तित कर वायसराय कर दिया गया।

 

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